
शिवकर बापूजी तलपड़े
शिवकर बापूजी तलपड़े: भारत के पहले विमान उड़ाने वाले अनसंग हीरो की अनसुनी कहानी
क्या आपने कभी सोचा कि हवाई जहाज़ का आविष्कार सबसे पहले किसने किया? स्कूल की किताबों में हमें पढ़ाया जाता है कि राइट ब्रदर्स (Wright Brothers) ने 1903 में पहली बार हवाई जहाज़ उड़ाया। लेकिन क्या आपको पता है कि इससे 8 साल पहले, यानी 1895 में, भारत में एक शख्स ने यह कारनामा कर दिखाया था? जी हाँ, हम बात कर रहे हैं शिवकर बापूजी तलपड़े की, जिन्हें कई लोग भारत का पहला वैमानिकी वैज्ञानिक मानते हैं। लेकिन अफसोस, इतिहास ने उन्हें वो सम्मान नहीं दिया, जिसके वो हकदार थे।
इस ब्लॉग में हम शिवकर बापूजी तलपड़े की ज़िंदगी, उनके गज़ब के आविष्कार और उनकी अनसुनी कहानी को विस्तार से जानेंगे। यह लेख आपको हैरान करेगा, प्रेरित करेगा और गर्व से सीना चौड़ा करने का मौका देगा। तो चलिए, इस रोमांचक सफर की शुरुआत करते हैं!

शिवकर बापूजी तलपड़े का जीवन परिचय: साधारण इंसान, असाधारण सपने
शिवकर बापूजी तलपड़े का जन्म 1864 में मुंबई (तब बॉम्बे) में हुआ था। वो महाराष्ट्र के पठारे प्रभु समुदाय से थे, जो मुंबई के पुराने और सम्मानित समुदायों में से एक था। उनका परिवार साधारण था – न ज्यादा पैसा, न कोई बड़ा रुतबा। लेकिन शिवकर बापूजी तलपड़े की सोच और जुनून किसी भी साधारण इंसान से परे था।
बचपन से ही उन्हें किताबें पढ़ने का शौक था, खासकर संस्कृत साहित्य और प्राचीन भारतीय ग्रंथ। उन्होंने अपनी पढ़ाई मुंबई के मशहूर सर जे.जे. स्कूल ऑफ आर्ट से पूरी की। यहाँ से उन्होंने न सिर्फ डिग्री ली, बल्कि बाद में इसी स्कूल में शिक्षक भी बने। लेकिन उनकी असली पहचान एक टीचर की नहीं, बल्कि एक सपने देखने वाले वैज्ञानिक की थी।
Shivkar Bapu Ji Talpade को उनके गुरु चिरंजीलाल वर्मा ने प्राचीन वैदिक ग्रंथों से परिचित करवाया। खास तौर पर स्वामी दयानंद सरस्वती के लेखों ने उनके दिमाग में एक चिंगारी जला दी। इन ग्रंथों में वैमानिकी (aviation) की बात थी, जो उस समय के हिसाब से बहुत बड़ी बात थी। बस यहीं से उनके मन में एक सपना जन्मा – आसमान में उड़ने का सपना।
शिवकर बापूजी तलपड़े और उनका सपना: आसमान को छूने की चाहत
आज हम हवाई जहाज़ को देखते हैं तो लगता है कि यह कोई बड़ी बात नहीं। हर दिन हज़ारों उड़ानें भरती हैं, लोग एक देश से दूसरे देश चले जाते हैं। लेकिन 19वीं सदी में यह सोचना भी नामुमकिन था कि कोई इंसान हवा में उड़ सकता है। उस समय न बिजली थी, न मॉडर्न मशीनें, न ही कोई तकनीकी सपोर्ट। फिर भी शिवकर बापूजी तलपड़े ने इस नामुमकिन को मुमकिन करने की ठान ली।
उन्होंने महर्षि भारद्वाज के वैमानिक शास्त्र को अपनी प्रेरणा बनाया। यह एक ऐसा ग्रंथ था, जिसमें प्राचीन भारत में विमानों की तकनीक की बातें लिखी थीं। इसमें विमानों के डिज़ाइन, ईंधन और उड़ान के तरीकों का ज़िक्र था। शिवकर बापूजी तलपड़े ने इस किताब को सिर्फ पढ़ा नहीं, बल्कि इसे हकीकत में बदलने की कोशिश की। उन्होंने अपने दिमाग और मेहनत से एक विमान बनाया, जिसका नाम रखा मरुत्सखा। इसका मतलब होता है “हवा का दोस्त” – और यह नाम इसकी कहानी को बखूबी बयान करता है।
शिवकर बापूजी तलपड़े का ऐतिहासिक प्रयोग: मरुत्सखा की उड़ान
1895 का वो दिन भारतीय इतिहास में सुनहरा बन सकता था, लेकिन इसे दबा दिया गया। शिवकर बापूजी तलपड़े ने मुंबई के चौपाटी बीच पर अपने बनाए विमान मरुत्सखा को टेस्ट करने का फैसला किया। यह एक मानवरहित (unmanned) विमान था, जिसे उन्होंने खुद डिज़ाइन किया था। कुछ लोगों का कहना है कि यह विमान करीब 1500 फीट की ऊँचाई तक उड़ा और कुछ मिनटों तक हवा में रहा।
इस ऐतिहासिक पल को देखने वाले कुछ खास लोग थे। इनमें उस समय के मशहूर जज महादेव गोविंद रानाडे और बड़ौदा के महाराजा सयाजीराव गायकवाड़ तृतीय शामिल थे। इन लोगों ने इस उड़ान की तारीफ भी की। लेकिन इस घटना का कोई ठोस रिकॉर्ड आज तक नहीं मिलता। ऐसा कहा जाता है कि अंग्रेज़ सरकार ने इस खबर को जानबूझकर दबा दिया। वो नहीं चाहते थे कि भारत का कोई वैज्ञानिक दुनिया में नाम कमाए।
मरुत्सखा को बनाने में शिवकर बापूजी तलपड़े ने बांस, कुछ हल्की धातुओं और खास सामग्रियों का इस्तेमाल किया था। कुछ कहानियों के मुताबिक, इसमें पारा (mercury) या कोई खास तरह का ईंधन इस्तेमाल हुआ था, जो वैदिक शास्त्रों में बताया गया था। हालाँकि, इसकी तकनीकी सच्चाई पर आज भी बहस होती है। लेकिन जो बात साफ है, वो यह कि शिवकर बापूजी तलपड़े ने अपने समय से बहुत आगे की सोच दिखाई।
शिवकर बापूजी तलपड़े की तकनीक: वैदिक विज्ञान और आधुनिक सोच का संगम
शिवकर बापूजी तलपड़े की सबसे बड़ी खासियत यह थी कि उन्होंने प्राचीन भारतीय ज्ञान को आधुनिक विज्ञान से जोड़ा। वैमानिक शास्त्र में 40 तरह के विमानों का ज़िक्र है। इनमें से कुछ सूरज की किरणों से चलते थे, तो कुछ पारा इंजन से। शिवकर बापूजी तलपड़े ने इनमें से एक डिज़ाइन को चुना और उसे हकीकत में उतारा।
उनके बनाए मरुत्सखा में एक खास तरह का इंजन था, जिसे वो “सूर्यशक्ति” से जोड़ते थे। कुछ शोधकर्ताओं का मानना है कि यह सोलर एनर्जी (सौर ऊर्जा) का शुरुआती रूप हो सकता था। आज NASA जैसे संगठन सौर ऊर्जा पर काम कर रहे हैं, लेकिन शिवकर बापूजी तलपड़े ने 19वीं सदी में ही इसकी कल्पना कर ली थी।
उन्होंने बांस का इस्तेमाल इसलिए किया, क्योंकि यह हल्का और मजबूत होता है। साथ ही, उन्होंने पंखों का डिज़ाइन ऐसा बनाया कि हवा का दबाव उसे ऊपर उठा सके। कुछ लोग कहते हैं कि इसमें पारा-आधारित इंजन था, जो गर्म होने पर भाप बनाता था और विमान को उड़ाने में मदद करता था। यह सब कुछ बताता है कि शिवकर बापूजी तलपड़े सिर्फ सपने देखने वाले नहीं, बल्कि एक प्रैक्टिकल वैज्ञानिक भी थे।

शिवकर बापूजी तलपड़े के समय का समाज और विज्ञान
शिवकर बापूजी तलपड़े जिस दौर में जी रहे थे, वो भारत के लिए बहुत मुश्किल भरा था। 19वीं सदी में भारत अंग्रेज़ों का गुलाम था। समाज में अंधविश्वास, गरीबी और अशिक्षा का बोलबाला था। उस समय विज्ञान की पढ़ाई बहुत कम लोगों तक पहुँचती थी। जो लोग पढ़े-लिखे थे, वो भी ज्यादातर अंग्रेज़ों की नौकरी करने में लगे थे।
लेकिन शिवकर बापूजी तलपड़े इन सब से अलग थे। उन्होंने न सिर्फ अपने लिए, बल्कि अपने देश के लिए कुछ बड़ा करने का सोचा। उस समय मुंबई एक बड़ा शहर बन रहा था। यहाँ व्यापार और शिक्षा का माहौल था, लेकिन वैज्ञानिक प्रयोगों के लिए कोई खास सुविधा नहीं थी। फिर भी, शिवकर बापूजी तलपड़े ने अपने छोटे से घर और सीमित साधनों में यह कमाल कर दिखाया।
उस समय के समाज में प्राचीन ग्रंथों को सिर्फ धार्मिक नज़रिए से देखा जाता था। लेकिन शिवकर बापूजी तलपड़े ने इनमें छिपे वैज्ञानिक ज्ञान को पहचाना। यह उनकी दूरदर्शिता को दिखाता है। अगर उस समय समाज ने उनकी मदद की होती, तो शायद उनकी कहानी कुछ और होती।
शिवकर बापूजी तलपड़े की उपलब्धि को क्यों दबाया गया?
अब सवाल उठता है कि जब शिवकर बापूजी तलपड़े ने इतना बड़ा काम किया, तो उन्हें वो पहचान क्यों नहीं मिली? इसके पीछे कई वजहें थीं:
- अंग्रेज़ों का दबदबा: उस समय भारत ब्रिटिश हुकूमत के नीचे था। अंग्रेज़ किसी भी भारतीय को आगे बढ़ते नहीं देखना चाहते थे। कुछ लोग कहते हैं कि उन्होंने मरुत्सखा की उड़ान के सबूत नष्ट कर दिए, ताकि यह खबर दुनिया तक न पहुँचे।
- संसाधनों की कमी: शिवकर बापूजी तलपड़े एक साधारण शिक्षक थे। उनके पास न तो बड़ी लैब थी, न ही कोई टीम। वो अपने दम पर काम कर रहे थे। बड़ौदा के महाराजा ने शुरू में उनकी मदद की, लेकिन अंग्रेज़ों के दबाव में वो भी पीछे हट गए।
- रिकॉर्ड की कमी: उस समय भारत में वैज्ञानिक प्रयोगों को रिकॉर्ड करने की कोई व्यवस्था नहीं थी। मरुत्सखा की उड़ान का कोई आधिकारिक सबूत न होने की वजह से इसे मिथक मान लिया गया।
- प्रचार का अभाव: राइट ब्रदर्स की तरह शिवकर बापूजी तलपड़े के पास प्रचार का कोई ज़रिया नहीं था। उनकी कहानी सिर्फ मुंबई के एक छोटे से इलाके तक सीमित रह गई।
शिवकर बापूजी तलपड़े बनाम राइट ब्रदर्स: असली हीरो कौन?

राइट ब्रदर्स ने 1903 में पहला मानव-संचालित (manned) हवाई जहाज़ उड़ाया और उन्हें दुनिया भर में शोहरत मिली। लेकिन शिवकर बापूजी तलपड़े ने उनसे 8 साल पहले, 1895 में, एक मानवरहित विमान उड़ाकर दिखाया था। फिर भी, राइट ब्रदर्स को ही “हवाई जहाज़ का आविष्कारक” माना जाता है। क्या यह नाइंसाफी नहीं?
राइट ब्रदर्स के पास बेहतर संसाधन थे – मशीनें, पैसा और एक ऐसा देश जो उनके काम को सपोर्ट कर रहा था। उनकी उड़ान को फिल्माया गया, अखबारों में छापा गया और इतिहास में दर्ज किया गया। दूसरी तरफ, शिवकर बापूजी तलपड़े के पास सिर्फ उनका दिमाग और जुनून था। अगर उन्हें भी वही मौके मिले होते, तो शायद आज दुनिया उन्हें ही असली हीरो मानती।
शिवकर बापूजी तलपड़े का पारिवारिक जीवन: एक सपने के पीछे की कुर्बानी
शिवकर बापूजी तलपड़े की ज़िंदगी सिर्फ उनके सपनों तक सीमित नहीं थी। उनके पीछे एक परिवार भी था, जो उनकी हर मुश्किल में साथ खड़ा रहा। उनकी शादी एक साधारण लड़की से हुई थी, जो उनके जुनून को समझती थी। कहा जाता है कि उनकी पत्नी ने अपने गहने तक बेच दिए, ताकि शिवकर बापूजी तलपड़े अपने विमान पर काम कर सकें।
उनके बच्चे भी थे, लेकिन उनकी ज़िंदगी में ज्यादा सुख-सुविधाएँ नहीं थीं। शिवकर बापूजी तलपड़े एक स्कूल टीचर थे, और उनकी सैलरी बहुत कम थी। फिर भी, उन्होंने अपनी कमाई का बड़ा हिस्सा अपने प्रयोगों में लगाया। यह उनके परिवार की कुर्बानी को दिखाता है। लेकिन जैसे-जैसे समय बीता, हालात और मुश्किल होते गए। अंग्रेज़ों की नज़र पड़ने के बाद उनका प्रोजेक्ट बंद हो गया, और परिवार आर्थिक तंगी में डूब गया।
शिवकर बापूजी तलपड़े का अंतिम समय: गुमनामी में खोया एक सितारा
शिवकर बापूजी तलपड़े की मृत्यु 1916 में हुई। उस समय तक वो पूरी तरह गुमनाम हो चुके थे। उनकी मृत्यु के बाद उनके परिवार की हालत और खराब हो गई। कर्ज़ के बोझ तले दबे परिवार ने मरुत्सखा के बचे हुए हिस्सों को बेच दिया। कुछ लोग कहते हैं कि यह एक ब्रिटिश कंपनी या हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स को बेचा गया, लेकिन इसका कोई पक्का सबूत नहीं मिलता।
उनके निधन के बाद उनकी कहानी लगभग भुला दी गई। लेकिन सच कभी पूरी तरह दब नहीं सकता। सालों बाद उनकी कहानी फिर से सामने आई, और आज लोग शिवकर बापूजी तलपड़े को याद करने लगे हैं।
शिवकर बापूजी तलपड़े की विरासत: फिल्म और शोध का योगदान
2015 में बॉलीवुड फिल्म हवाईज़ादा आई, जिसमें आयुष्मान खुराना ने शिवकर बापूजी तलपड़े का किरदार निभाया। इस फिल्म ने उनकी ज़िंदगी को नए सिरे से लोगों के सामने लाया। फिल्म में उनके संघर्ष, जुनून और उस ऐतिहासिक उड़ान को दिखाया गया। भले ही फिल्म में कुछ काल्पनिक चीज़ें जोड़ी गई हों, लेकिन इसने शिवकर बापूजी तलपड़े की कहानी को लाखों लोगों तक पहुँचाया।
इसके अलावा, कई शोधकर्ता और इतिहासकार उनकी उपलब्धियों को मान्यता देने की कोशिश कर रहे हैं। कुछ लोगवैमानिक शास्त्र को दोबारा पढ़ रहे हैं, ताकि यह समझ सकें कि क्या सचमुच प्राचीन भारत में विमान थे। शिवकर बापूजी तलपड़े ने इस ग्रंथ को सच साबित करने की कोशिश की थी, और उनकी यह कोशिश आज भी प्रेरणा देती है।
शिवकर बापूजी तलपड़े आज के वैज्ञानिकों की नज़र में
आज के वैज्ञानिक शिवकर बापूजी तलपड़े को किस नज़रिए से देखते हैं? कुछ लोग कहते हैं कि वैमानिक शास्त्र में लिखी बातें सिर्फ कल्पना थीं, और मरुत्सखा शायद सचमुच उड़ा ही नहीं था। उनका मानना है कि उस समय की तकनीक से ऐसा विमान बनाना नामुमकिन था।
लेकिन कुछ वैज्ञानिक और इतिहासकार इससे सहमत नहीं हैं। उनका कहना है कि शिवकर बापूजी तलपड़े ने जो किया, वो अपने आप में एक चमत्कार था। अगर वो सचमुच हवा में कुछ मिनटों के लिए भी उड़ सके, तो यह उस समय की सबसे बड़ी उपलब्धि थी। आज के ड्रोन और हल्के विमानों को देखें, तो मरुत्सखा उसका शुरुआती रूप हो सकता था।
शिवकर बापूजी तलपड़े से आज की पीढ़ी क्या सीख सकती है?
शिवकर बापूजी तलपड़े की कहानी हमें कई सबक सिखाती है:
- सपने बड़े देखो: हालात चाहे जैसे हों, सपने देखने की हिम्मत मत छोड़ो। शिवकर बापूजी तलपड़े ने गरीबी में भी आसमान छूने का सपना देखा।
- अपने जड़ों पर गर्व करो: उन्होंने प्राचीन भारतीय ज्ञान को अपनाया और उसे दुनिया के सामने लाने की कोशिश की। हमें भी अपनी संस्कृति और इतिहास पर भरोसा रखना चाहिए।
- मेहनत और लगन: बिना किसी बड़े सपोर्ट के उन्होंने इतना बड़ा काम कर दिखाया। यह हमें सिखाता है कि मेहनत से कुछ भी हासिल किया जा सकता है।
शिवकर बापूजी तलपड़े और भारतीय विज्ञान का भविष्य
शिवकर बापूजी तलपड़े की कहानी हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि अगर उन्हें सही मौका मिला होता, तो भारत का वैज्ञानिक इतिहास कुछ और ही होता। आज भारत ISRO जैसे संगठनों के ज़रिए अंतरिक्ष में झंडे गाड़ रहा है। लेकिन हमें अपने उन पुराने वैज्ञानिकों को भी याद करना चाहिए, जिन्होंने सीमित साधनों में बड़े सपने देखे।
अगर आज के युवा शिवकर बापूजी तलपड़े से प्रेरणा लें, तो शायद हम फिर से दुनिया को हैरान कर सकते हैं। हमें अपने प्राचीन ज्ञान और आधुनिक तकनीक को मिलाकर कुछ नया करना चाहिए – ठीक वैसे ही, जैसे शिवकर बापूजी तलपड़े ने किया था।
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निष्कर्ष: शिवकर बापूजी तलपड़े – एक भूला हुआ नाम, जो याद रहने लायक है
शिवकर बापूजी तलपड़े एक ऐसे इंसान थे, जिन्होंने अपने जुनून और मेहनत से नामुमकिन को मुमकिन करने की कोशिश की। भले ही उन्हें अपने समय में वो सम्मान न मिला, लेकिन उनकी कहानी आज भी हमें प्रेरित करती है। वो भारत के उन अनसंग हीरोज में से एक हैं, जिन्हें हमें याद रखना चाहिए।
अगर हम अपने देश के इन गुमनाम नायकों को दुनिया के सामने लाएँ, तो शायद एक दिन शिवकर बापूजी तलपड़े को वो जगह मिले, जो वो सचमुच डिज़र्व करते हैं। तो आप क्या सोचते हैं? क्या शिवकर बापूजी तलपड़े को हवाई जहाज़ का असली आविष्कारक माना जाना चाहिए? अपनी राय कमेंट में ज़रूर बताएँ!
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Shivkar bapuji ko credit do
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